Jun 5, 2022

World Environment Day आज हम विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में चर्चा करेंगे जो हर साल 5 जून को मनाया जाता है।

 World Environment Day

आज हम विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में चर्चा करेंगे जो हर साल 5 जून को मनाया जाता है।



World Environment Day Speech विश्व पर्यावरण दिवस पर टिपनी कैसे लिखें: हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। कई दशकों पहले ही पर्यावरण के सामने उत्पन्न होने वाले वैश्विक संकट को देखते हुए पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की जा चुकी है। इसके बावजूद पर्यावरण की दशा सुधारने के बजाय लगातार बिगड़ रही है। इसके मूल कारण क्या है? पर्यावरण को स्वच्छ-सुरक्षित रखने के लिए किस तरह के प्रयासों की आवश्यकता है? ऐसे में अगर आपको विश्व पर्यावरण दिवस पर भाषण या विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध लिखना है तो, करियर इंडिया हिंदी आपके बेस्ट विश्व पर्यावरण दिवस पर भाषण और विश्व पर्यावरण पर निबंध का ड्राफ्ट लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं विश्व पर्यावरण दिवस पर भाषण टिपणी कैसे लिखें?

विश्व पर्यावरण दिवस पर टिपनी
पर्यावरण में पिछले कुछ वर्षों से कई तरह के असामान्य और अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। ये परिवर्तन प्रकृति के प्रमुख घटकों जल, जंगल, जमीन और समस्त वायुमंडल को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। यह दुष्प्रभाव इतना तीव्र है कि पृथ्वी, इसके वायुमंडल और संपूर्ण जीव जगत के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इसके साथ ही मानव व्यवहार में लगातार नष्ट हो रही जैव विविधता, एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। हाल ही में विश्व आर्थिक मंच डब्ल्यूईएफ ने अपनी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2021 में जैविक विविधता की हानि को मानव सभ्यता के सामने मौजूद सबसे बड़े खतरों में शुमार किया है। प्रदूषण रोकने के कुप्रबंधन और वनों की अनियंत्रित कटाई से भी पर्यावरण का संतुलन लगातार बिगड़ रहा है। इसके दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग, चक्रवात, बाढ़ और तूफान के रूप में दिखते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद लगातार बिगड़ते पर्यावरण के बारे में पूरी दुनिया को आगाह कर रहे हैं।

बिगड़ते पर्यावरण के मूल कारण
लगातार बिगड़ते पर्यावरण के मूल कारणों को अगर हम तलाशें तो पाएंगे कि विकास और तकनीकी प्रगति की अंधी दौड़ में हमने पर्यावरण के घटकों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचाया है। उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाववश उपभोग की भी अनियंत्रित आदतों के कारण संसाधनों के असीमित दोहन की प्रवृत्ति इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। यह दोहन इस स्तर तक बढ़ गया है कि हमारे पर्यावरण के घटकों में असंतुलन बढ़ता जा रहा है। दरअसल, पर्यावरण जिस तरह पृथ्वी पर पाए जाने वाली सभी जीवधारियों को प्रभावित करता है, उसी तरह वह स्वयं भी सारे जीवधारियों की गतिविधियों से प्रभावित होता है। यानी, पर्यावरण और समस्त जीवधारियों में गहरा संबंध होता है। यही पूरी तरह आपसी संतुलन पर टिका हुआ होता है। ऐसे में जब मानवीय गतिविधियां अनियंत्रित और प्रकृति के विरुद्ध होती हैं तो यह संतुलन बिगड़ता है और पर्यावरण अनेक संकटों से ग्रस्त होने लगता है।

मानव गतिविधियां पर जिम्मेदार
प्रकृति ने समस्त जीवों की उत्पत्ति एक ही सिद्धांत के तहत की है वह समस्त चर-अचर जीवो के अस्तित्व को एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब मनुष्य ने स्वयं को पर्यावरण का हिस्सा ना मानकर उसको अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विकृति करने लगा। इन गतिविधियों ने प्रकृति के रूप को पूरी तरह बिगाड़ दिया। हालात ये हो गए कि जो नदियां, पहाड़, जंगल और जीव पृथ्वी पर हर और नजर आते थे इनकी संख्या घटती गई। इतनी की कोई विलुप्त हो गए और ढेरों विलुप्त के कगार पर हैं। ऐसा लगता है कि इंसान समाज ने प्रकृति के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है और स्वयं को प्रकृति से अधिक ताकतवर साबित करने में जुटा हुआ है। यह जानते हुए भी कि प्रकृति के विरुद्ध युद्ध में वह जीत कर भी अपना वजूद सुरक्षित नहीं रख पाएंगे

वैज्ञानिक आकांक्षा
हालांकि लाखों साल से तमाम मुश्किलों के बावजूद पृथ्वी जीवन को कायम रखते हुए हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि जिस तरह पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है, उससे पृथ्वी के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। पृथ्वी के नष्ट होने की यही भविष्यवाणी आधुनिक युग के एक महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस ने की थी। हॉकिंस के अनुसार, मनुष्य इस ग्रह पर 10 लाख साल बिता चुका है। अगर मनुष्य की प्रजाति को बचाना है तो उसे पृथ्वी छोड़कर किसी और ग्रह या उपग्रह पर शरण लेनी होगी। फिलहाल तो अब तक किसी ग्रह पर जीवन संभव नहीं जान पड़ रहा है तो हमारे पास पृथ्वी को ही सुरक्षित रखने के प्रयास करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है।

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