Oct 2, 2023

putr viyog sharansh

 iqbal success classes cente gidhaur jamui                                                                                  aaj ज दिशाएँ भी हँसती हैं

है उल्लास विश्व पर छाया

मेरा खोया हुआ खिलौना

अब तक मेरे पास न आया |

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री कहती है कि आज चारों ओर खुशी का वातावरण है और सारे संसार में खुशियाँ छाई है लेकिन ये खुशियाँ मेरे लिए व्यर्थ है क्योंकि मेरा खोया हुआ पुत्र अब तक मुझे प्राप्त नहीं हुआ | अर्थात कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है।

 

शीत न लग जाए, इस भय से

नहीं गोद से जिसे उतारा

छोड़ काम दौड़ कर आई

‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा

 

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमे उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने शीत लगने के भय से उसे अपनी गोद से नहीं उतारा | उसने जब भी माँ कहके आवाज लगाई मैं अपना सारा काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़कर आई ताकि उसकी जरूरतों को पूरा कर सकूँ |

 

थपकी दे दे जिसे सुलाया

जिसके लिए लोरियाँ गाईं,

जिसके मुख पर जरा मलिनता

देख आँखें में रात बिताई।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके हरेक सुख का ध्यान रखा | जिसे थपकी दे कर सुलाया और जिसके लिए लोरियाँ गाई | उसके चेहरे पर छाई उदासी को महसूस करके जिसका रात भर जाग कर ख्याल रखा |

 

जिसके लिए भूल अपनापन

पत्थर को भी देव बनाया

कहीं नारियल दूध, बताशे

कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके लिए अपने सारे सुखों को भूला दिया | पत्थर को देवता मानकर जिसे नारियल दूध और बताशे चढ़ाएँ | जिसके लिए मैंने देवालयों में शीश नवाया वो आज मेरे पास नहीं है |

 

फिर भी कोई कुछ न कर सका

छिन ही गया खिलौना मेरा

मैं असहाय विवश बैठी ही

रही उठ गया छौना मेरा।

 

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे द्वारा की गई पूजा अर्चना दुआएँ कोई भी काम नहीं आई | कोई भी मेरा कुछ नहीं कर सका और मेरा हृदय का टुकड़ा मुझसे छिन ही गया | मैं आज असहाय और विवश बैठी हूँ और मेरा नन्हा बच्चा मेरे आँखों के सामने ही भगवान को प्यारा हो गया |

तड़प रहे हैं विकल प्राण ये

मुझको पल भर शांति नहीं है

वह खोया धन पा न सकूँगी

इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।

 

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे प्राण तड़प रहे है और मुझे एक पल की भी शांति नहीं है | मैंने जो अनमोल धन खो दिया है उसे मैं अब वापस नहीं पा सकूँगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है |

 

फिर भी रोता ही रहता है

नहीं मानता है मन मेरा

बड़ा जटिल नीरस लगता है

सूना सूना जीवन मेरा।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं जानती हुँ कि मैं अपने पुत्र को प्राप्त नहीं कर सकती | फिर भी मेरा हृदय मेरा मन इस बात को मानने को तैयार नहीं है | मेरा जीवन अब कठिन और नीरस सा हो गया है।

 

यह लगता है एक बार यदि

पल भर को उसको पा जाती

जी से लगा प्यार से सर

सहला सहला उसको समझाती।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि यदि मैं अपने पुत्र को एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे जी भर कर प्यार करती और उसे समझती कि वह अपनी माँ को यूं छोड़ कर ना जाए | लेकिन अब उसको पाना संभव नहीं है |

 

मेरे भैया मेरे बेटे अब

माँ को यों छोड़ न जाना

बड़ा कठिन है बेटा खोकर

माँ को अपना मन समझाना।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं अपने पुत्र को अगर एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे समझाती कि वह मझे छोड़कर न जाए | माँ के लिए अपने बेटे को खोकर अपने मन को सांत्वना देना बड़ा ही कठिन होता है |

 

भाई-बहिन भूल सकते हैं

पिता भले ही तुम्हें भुलावे

किन्तु रात-दिन की साथिन माँ

कैसे अपना मन समझावे |

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है | कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि भाई-बहन तुम्हें भूल सकते है तुम्हारे पिता भले ही तम्हें भूल जाएँ लेकिन एक माँ जो दिन-रात अपने बच्चे के साथ रही हो वो कैसे अपने मन को समझा सकती है | कवयित्री कहना चाहती है कि माँ का हृदय बच्चे को कभी भी नहीं भूल सकता|

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